दुश्मनी, बदला, ईर्ष्या इन्सान को अन्धा बना देता हैं। इन्हीं के वश होकर कालीचरण ने अमर जैसे सच्चे और जवान को मार डालने की योजना बनायी। रामशास्त्री नामक गुंडे को तैनान किया। नाम से गुंडा नहीं लगता था, पर काम से वह अव्वल दर्जे का खूनी था। उसने अमर को बड़ी सरलता से मार डाला।
अमर स्वर्गलोक और नरकलोक पहुँचा। वहाँ उसने राजा इन्द्र की इतनी अच्छी ख़बर ली कि वह इस मामूली इन्सान से डर गया। यमलोक पहुँचकर वहाँ के मज़दूरों को शिफ्ट सिस्टम, ओवर-टाइम, हड़ताल के बारे में समझाया। उन्हें बताया कि ये सब तीर हम धरती पर आजमा चुके हैं और कामयाब भी हुए हैं। बस फिर क्या था, यमलोक में इन्क़लाव का नारा बुलन्द हुआ और यमराज को अपनी हार माननी पड़ी। वाह रे इन्सान तुमने असंभव को संभव बना दिया! यमराज और चित्रगुप्त खुद कानून सीखने धरती पर आये।
मरा अमर फिर कालीचरण के यहाँ आया। लोगों के सामने उसकी पोल खोली और अपनी अक़लमन्दी से उसे इस तरह फँसा दिया कि वह बेचारा भीगी बिल्ली बन गया। उसकी बेटी सावित्री से उसका प्यार चलता रहा।
धरती पर आये हुए यमराज और चित्रगुप्त पूरे इन्सान बन गये। इन्सानों के सुख-दुख जानने की कोशिश में बेचारों को जेल जाना पड़ा। नरकाधिपति यमराज जेल में और वह भी एक लड़की के लिए! हाँ, हाँ, यह हुआ। और उनका छुटकारा भी हुआ एक मामूली इन्सान अमर की वजह से।
कालीचरण ने छोरी दिखाकर उनके हीरे जवाहरातों की चोरी करनी चाही। इन्सानों के इन करतबों को देखकर वे सन्नाते में आ गये।
"लोक परलोक" देख कर आप भी सन्नाटें में आ जाएंगे। सावित्री और अमर के प्रम की जीत हुई और मरा अमर, सचमुच अमर बन यगा। ये असंभव कैसे संभव हो सकते हैं?
देखिए-मनोरंजन से भरपूर मनमोहक "लोक परलोक"
[From the official press booklet]